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जाने कहाँ छिप गया है
धैर्य भी अधीर हुआ है
शहर भर में चर्चा हुआ है
संतोष कहीं खो गया है
ना धन में ना दौलत में
ना महल में ना मंदिर में
सुख चैन मिल रहा है
संतोष कहीं खो गया है ।
मं शर्मा (रज़ा)
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