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थके थके से पाँव बढ़ाते
सीधी राह पर डगमगाते
सूरज की गर्मी से कुम्हलाते
अपने पौरूष को लजाते
ऐसे कैसे मंजिल पाओगे
मन में हौसलों का संचार करो
पग में अगर काँटे चुभे हैं
स्वयं उनका उपचार करो।
मं शर्मा (रज़ा)
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