सामान's image
Share0 Bookmarks 5 Reads0 Likes

सामान जुटाया था कितना

अवसर फिर भी मिला नहीं

चाहत भी थी जीने की पर

जीना रास आया ही नहीं

बिन माँगे मिल जाता है

चाहने से कुछ मिला नहीं

ऐसा लगने लगा है मुझको

ठगा गया हूँ हर बार मैं ही।


मं शर्मा(रज़ा)

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts