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धरती से बंधा हूँ
बंधक नहीं हूँ
जड़ों से जुड़ा हूँ
सीमित नहीं हूँ
साधना में रत हूँ
साध्य नहीं हूँ
ज़मीं से जन्मा हूँ
बशर नहीं हूँ
ये फैली शाखाएं
लहराते पत्ते
कहते हैं किस्से
मेरे विस्तार के
अपनी मर्ज़ी का
खुद मुख्तार हूँ
धरती पर शोभता
मैं एक शजर हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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