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आसमां पे नज़र नहीं आजकल
औकात अपनी पहचान गए क्या
नज़र ज़मी पर रखके चल रहे हो
ठोकरों से सबक सीख गए क्या
बातों में अब वो तल्खी नहीं है
जुबां से सभी फूल झड़ गए क्या
चाहतों की ख्वाहिशें मिट सी गई हैं
सपनों की गिरफ्त से छूट गए क्या ।
मं शर्मा (रज़ा)
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