
Share0 Bookmarks 8 Reads0 Likes
भोर के आते ही
चाँद रिहा हुआ है
जाने दिया उसको
कल रात से टंगा हुआ है
सूरज आता होगा अभी
ऋचाएँ गुनगुनाता हुआ
दिन भर यहीं विहार रहेगा
साँझ ढलते ही चल देगा
कितनी सुव्यवस्थित हैं
ये प्रकृति की क्रियाएँ
सुनियोजित ढंग से चल रहा
कारोबार किसी का।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments