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भोर के आते ही

चाँद रिहा हुआ है

जाने दिया उसको

कल रात से टंगा हुआ है


सूरज आता होगा अभी

ऋचाएँ गुनगुनाता हुआ

दिन भर यहीं विहार रहेगा

साँझ ढलते ही चल देगा


कितनी सुव्यवस्थित हैं

ये प्रकृति की क्रियाएँ

सुनियोजित ढंग से चल रहा

कारोबार किसी का।


मं शर्मा (रज़ा)

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