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कहाँ कोई यूँ भी
जीने दे रहा है
क्यों न खुदी को मार
जीना सीख लें
प्यार की बहुत
कमी है जहाँ में
क्यों न रंजिशों को
गले लगाना सीख लें।
मं शर्मा (रज़ा)
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कहाँ कोई यूँ भी
जीने दे रहा है
क्यों न खुदी को मार
जीना सीख लें
प्यार की बहुत
कमी है जहाँ में
क्यों न रंजिशों को
गले लगाना सीख लें।
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