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उठा है धुआँ तो लपटें भी होंगी
आए हैं अब्र तो बारिशें भी होंगी
बेवजह मारने की कोशिश न कर
दिल है तो ख्वाहिशें भी होंगी
दर्द छलका तो दर्द ही बाँटेगा
तेरीआवाज़ दबाने की कोशिश होगी
दौरे मुफ्लिसी को न याद किया कर
रहनुमाओं की हकीकत उजागर होगी।
मं शर्मा(रज़ा)
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