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मीरा का कि राधा का
वो तो सबका साझा है
कान्हा को उसने पाया
जिसने मन से चाहा है
अति सूक्ष्म भेद गहरा
कोई समझ न पाया है।
मं शर्मा (रज़ा)
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वो तो सबका साझा है
कान्हा को उसने पाया
जिसने मन से चाहा है
अति सूक्ष्म भेद गहरा
कोई समझ न पाया है।
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