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ना रंग है ना सुगंध है
ना भंवरा ना मकरंद है
ना कलियाँ ना शाख है
एक अनबुझी प्यास है
चुभता हुआ सा शूल हूँ
हालातों के माकूल हूँ
मृगतृष्णा सी भूल हूँ
सेहरा में खिला फूल हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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