
Share0 Bookmarks 14 Reads0 Likes
हवा संग रूख बदलता है
आज यहाँ कल वहाँ मिलता है
प्यार नहीं मौसम हुआ है
बस आता जाता रहता है
जोग नहीं खेल तमाशा है
प्रेम की बदली परिभाषा है
त्याग समर्पण कोई न जाने
सबको पाने की आशा है ।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments