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प्रीत पावन है
कलुषित न कर
प्रीत असीम है
सीमित न कर
प्रीत उन्मुक्त है
बंधन मुक्त कर
प्रीत वरदान है
शापित न कर।
मं शर्मा( रज़ा)
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प्रीत पावन है
कलुषित न कर
प्रीत असीम है
सीमित न कर
प्रीत उन्मुक्त है
बंधन मुक्त कर
प्रीत वरदान है
शापित न कर।
मं शर्मा( रज़ा)
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