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किसी को राधा
किसी को मीरा बना दे
तन का रहे न होश
मन जोगी बना दे
कभी समर्पण है
कभी तर्पण है
प्रेम वो तप है जो
दुनिया भुला दे ।
मं शर्मा (रज़ा)
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किसी को राधा
किसी को मीरा बना दे
तन का रहे न होश
मन जोगी बना दे
कभी समर्पण है
कभी तर्पण है
प्रेम वो तप है जो
दुनिया भुला दे ।
मं शर्मा (रज़ा)
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