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नयनों को भाया प्रेम नहीं
मन में उतर गया प्रेम नहीं
चित्त की व्याकुलता प्रेम नहीं
पाने की आतुरता प्रेम नहीं
प्रेम योग है रोगी न बन
प्रेम तपस्या है भोगी न बन
प्रेम सृष्टि का प्रारब्ध है
प्रेम स्वयं से अनभिज्ञ है ।
म शर्मा (रज़ा)
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