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सागर के विशाल पटल पर
सिंदूरी प्रभाकर उतर आया है
विशाल ज्योतिपुँज से उसने
लहरों पर सोना बरसाया
भोर हुई अब नींद से जागो
जीवन को व्यर्थ ना गंवाओ
चंचल शीतल लहरों से सीखो
जीवन में गतिशीलता लाओ।
मं शर्मा (रज़ा)
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