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दामन फैलाया है
आबाद हो कि न हो
तू ही दाता है
तुझे याद हो कि न हो
फरियाद की है
पूरी हो कि न हो
मुझको आदत है
चाहे ठुकराए हर बार वो।
मं शर्मा( रज़ा)
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दामन फैलाया है
आबाद हो कि न हो
तू ही दाता है
तुझे याद हो कि न हो
फरियाद की है
पूरी हो कि न हो
मुझको आदत है
चाहे ठुकराए हर बार वो।
मं शर्मा( रज़ा)
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