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फरेब चाहे कोई दे
दर्द चाहे कहीं से मिले
आँसुओं की मजबूरी को
मैं ही समझता हूँ
फरेब की कहानी को
अपनी जुबानी कहता हूँ
चुन चुन कर मोती सारे
कविताओं में पिरोता हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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फरेब चाहे कोई दे
दर्द चाहे कहीं से मिले
आँसुओं की मजबूरी को
मैं ही समझता हूँ
फरेब की कहानी को
अपनी जुबानी कहता हूँ
चुन चुन कर मोती सारे
कविताओं में पिरोता हूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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