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कभी न कभी पूर्ण हो जाएगी
मन की ये अभिलाषा तेरी
कब तक भ्रम पालेगा पगले
व्यर्थ जा रही प्रतीक्षा तेरी
राम नहीं कोई इस युग में
ठोकर से अहिल्या कर देंगे
पाषाण हो तुम पाषाण रहो
नारी होकर भी क्या कर लोगे ।
मं शर्मा(रज़ा)
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