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मरूभूमि में मृगतृष्णा जैसी
कष्टनिवारिणी माँ गंगा जैसी
प्रमियों के मिलन राग जैसी
आराध्य के अप्रतिम अनुराग जैसी
बीहड़ मार्ग में सुगम राह जैसी
कठिन प्रश्न के सरल जवाब जैसी
मेरे रोम रोम की संचालक जैसी
तुम कल्पना हो मेरी परिकल्पना जैसी।
मं शर्मा (रज़ा)
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