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कल्पना की उड़ान की
कोई सीमा नहीं
प्रेम की पराकाष्ठा की
कोई हद नहीं
छू लो आसमां को
गर परवाज़ में दम है
बिना कोशिशों के
कुछ भी आसान नहीं ।
मं शर्मा (रज़ा)
#स्वरचित
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कल्पना की उड़ान की
कोई सीमा नहीं
प्रेम की पराकाष्ठा की
कोई हद नहीं
छू लो आसमां को
गर परवाज़ में दम है
बिना कोशिशों के
कुछ भी आसान नहीं ।
मं शर्मा (रज़ा)
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