
Share0 Bookmarks 17 Reads0 Likes
पेड़ों पर लहलहाते गुमचे
खेलते कूदते मासूम बच्चे
कितने पाक सच्चे लगते हैं
निस्वार्थ प्रेम बाँटते फरिश्ते
प्रेम की भाषा सब समझते हैं
मूक प्राणियों को सहला कर देखो
स्वार्थवश प्रेम केवल व्यापार है
कभी यूँ भी किसी का होके देखो।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments