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राह तका करती हैं राहें

जाने कब कौन आ जाए

कहकर गए थे जल्द लौटेंगे

लौट के अब तक ना आए


कैसे भूल गए सब निष्ठुर

अपनी गलियाँ घर आँगन

जहाँ बढ़ाईं थीं ऊँची पींगें

वो शजर भी याद ना आए।


मं शर्मा (रज़ा)

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