
Share0 Bookmarks 19 Reads0 Likes
रोज़ बने और रोज़ मिटे
कुछ छोटे कुछ बड़े दिखे
लहरों जैसे कुछ बह गए
कुछ यादें अपनी छोड़ गए
ख्वाब थे बुलबुले सरीखे
नित गढ़े और नित टूटे
समंदर को गीली रेत पर
मानो कदमों के निशां छूटे ।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments