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मिलन की आस का
विरह के प्रहार का
दंश सह रही हूँ मैं
कान्हा तेरी राह की
धूल हो रही हूँ मैं
निर्झर प्रेम धारा के
निराशा भरे कूप में
निमग्न हो रही हूँ मैं
नयनों के पावन जल से
यादें पखार रही हूँ मैं।
मं शर्मा( रज़ा)
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