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पढ़ रही है नज़र

नज़र की ज़ुबान को

झुकाना मत नज़र

हया के नाम पे


कहीं बिन पढ़े ही

रह न जाएं

कुछ पन्ने

दिल की किताब के ।


मं शर्मा( रज़ा)

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