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चल तो रहे थे अपने ही रास्ते
कुछ अपने कुछ अपनों के वास्ते
दर्द था कि बिन बुलाए चला आया
साथ हो लिया आहिस्ते आहिस्ते
मुझे डगमगाने की कोशिशों में
अड़चनें डालता रहा रास्तों में
नजर ए इनायत मांगता रह गया मैं
पनाहों में तेरी नज़रों के सामने।
मं शर्मा (रज़ा)
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