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विचारों का गुब्बार उठा था
लेकिन शब्दों का हार नहीं था
समय की रफ्तार तेज थी
अंतर्मन में उथल पुथल थी
अजब गजब दौड़ मची थी
सबको जीतने की होड़ लगी थी
मुड़कर देखा सब छूट रहा था
विचारों का बाँध टूट रहा था
मैंने मन की सुनने का सोचा
खुद से बातें करने का सोचा
अपनी कलम को दिया मौका
कविताओं में खुद को समेटा।
मं शर्मा (रज़ा)
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