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धीरे धीरे बदल रहा है
अपनी अस्मिता खो रहाहै
शहर के फेर में पड़ कर
निरंतर पलायन हो रहा है
मेरा गाँव शहर हो रहा है
सूने हो गए गली चौबारे
सूनी रहने लगी चौपाल
नई पहचान पाने की धुन में
धीरे धीरे सिमट रहा है
मेरा गाँव शहर हो रहा है।
मं शर्मा (रज़ा)
#स्वरचित
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