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सूरज ने प्रकाशित किया
हर गली कूचे मकान को
हमही कुछ इस तरह जीए
ज्यों चार दिन के मेहमान हो
चार दिन बहुत लंबे पड़े
खोला भी नहीं सामान को
जीवन तक तो जीना पड़ेगा
चाहे सूरज बन कि सामान हो।
मं शर्मा( रज़ा)
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