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जाने कितने आए
कितने गए
सिर्फ तुम ही
मुझको याद रहे
मासूम अहसास
जगा कर पल में
तुम मन प्रांगण में
घर कर गए
सुख की छाँव
या दुख की धूप
तुम साया बन
मेरे साथ चले ।
मं शर्मा (रज़ा)
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जाने कितने आए
कितने गए
सिर्फ तुम ही
मुझको याद रहे
मासूम अहसास
जगा कर पल में
तुम मन प्रांगण में
घर कर गए
सुख की छाँव
या दुख की धूप
तुम साया बन
मेरे साथ चले ।
मं शर्मा (रज़ा)
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