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ज़मीं से आसमाँ तक रच के
साजिशें तेरी बर्बादी की
तेरे पहलू में आ बैठे हैं
मशवरे देने की खातिर
मशवरा लेने में हर्ज क्या है
मिटना ही है दर्द क्या है
दोस्ती निभाले दुश्मनों से
आज फिर दोस्ती की खातिर ।
मं शर्मा (रज़ा)
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