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जीवन मरूस्थल में
मन का व्याकुल पंछी
बूँद बूँद को तरसा जैसे
जल बिन तड़पे मीन
अँसुअन से रीते नयन
प्रिय की राह तकैं दिन रैन
प्रीत के मौसम बीत गए
बिन सुने मीठे दो बैन ।
मं शर्मा (रज़ा)
#स्वरचित
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