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आँखों से नीर बन कर
कहीं बह न जाना तुम
यादों की इस भीड़ में
कहीं बिसर न जाना तुम
मन में बसाया है जबसे
खाली बचा न कोई कोना
मन की आँखों से होता है
नित तुमको निहारा करना।
मं शर्मा (रज़ा)
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