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कह देने से बात बने ना
सुनने को कोई तैयार रहे ना
मनोभावों पर वश चले ना
तुम ही कहो मैं क्या करूँ
जीवन एक उलझन हो
सुलझना नामुमकिन हो
घुटन से दम घुटता हो
तुम ही कहो मैं क्या करूँ।
मं शर्मा (रज़ा)
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