
Share0 Bookmarks 29 Reads0 Likes
खामोश मैं अब कैसे रहूँ
लफ्ज़ कुछ बोलने लगे हैं
आँसुओं को छिपा तो लूँ
ज़ख्म भी रिसने लगे हैं
मर्ज कोई समझता नहीं
दवा सब करने चले हैं
हुआ शिकायतों का दौर खत्म
हिमायती जाने लगे हैं।
मं शर्मा( रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments