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सफर लंबा है शायद
लिटा कर भेज रहे हैं
नहला कर सजा कर
जँचा कर भेज रहे हैं
ना जाने क्यों आज
इतनों को बुलाया है
इसको उसको सबको
रो रोकर रूलाया है
क्यों आज ही इतना
स्नेह बरसा रहे हैं
क्या राज़ है छुपा रहे हैं
हमतो अपने ही घर जारहे हैं।
मं शर्मा( रज़ा)
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