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भूला नहीं हूँ आज भी

वो बचपन के ज़माने

कागज़ की कश्तियाँ

और लकड़ी के खिलौने


दिन भर माँ तेरा यूँही

चौके में खटते रहना

स्कूल से जब लौटूँ तो

मेरा ललाट चूमना


कैसे भूल सकता हूँ माँ

मीठे सपनों के दिन सुहाने

हैं आज भी महफूज़ दिल में

तेरी यादों के खजाने।



मं शर्मा (रज़ा)

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