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कुछ तेरे कर्मों की करनी

कुछ था खेल नसीबों का

लाचारी का खोल ओढ़कर

मत कर ढोंग मजबूरी का


जीवन को खेल समझ कर

खूब लिया रंग मनमानी का

खुद को ही भरना पड़ता है

दंड अपनी अपनी करनी का।


मं शर्मा( रज़ा)

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