क्षितिज's image
Share0 Bookmarks 20 Reads0 Likes

धुआँ धुआँ सी ज़मीं

धुआँ धुआँ आसमाँ

सुलग रहे ख्वाब सभी

हसरतें धुआँ धुआँ

रूह दम तोड़ रही

जिस्म हो रहा धुआँ

इस धुएँ के पार भी है

एक मुकम्मल सा जहाँ

क्षितिज के पार चल कभी

बसा लें एक नई दुनिया।



मं शर्मा (रज़ा)

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts