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मैं खुद में खो जाऊँ जब

तुमको भूल जाऊँ तब 

यादों की खिड़की खोलकर

तुम मुझको आवाज़ न देना


आगे मैं बढ़ जाऊँगा जब

हरगिज़ रूक न पाऊँगा तब

रिश्तों की फिर दुहाई देकर

तुम मुझको आवाज़ न देना ।


मं शर्मा (रज़ा)

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