
Share0 Bookmarks 18 Reads0 Likes
मन तो एक मंदिर था
तेरा ही तो घर था
आस्था का धूप दीप
विश्वास का नैवैद्य था
जाने कब आसक्त हुआ
मोहमाया से लिप्त हुआ
मंदिर जब महल बना तो
खंडहर में तब्दील हुआ।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
मन तो एक मंदिर था
तेरा ही तो घर था
आस्था का धूप दीप
विश्वास का नैवैद्य था
जाने कब आसक्त हुआ
मोहमाया से लिप्त हुआ
मंदिर जब महल बना तो
खंडहर में तब्दील हुआ।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments