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खामोशी जब शोर करे
तन्हाई खलने लगे
उलझने उलझे उलझे
सवाल कई करने लगे
वजूद के अहसास को
खुद में समेट कर
पीछे सब छोड़ कर
तुम चले आना ।
मं शर्मा (रज़ा)
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खामोशी जब शोर करे
तन्हाई खलने लगे
उलझने उलझे उलझे
सवाल कई करने लगे
वजूद के अहसास को
खुद में समेट कर
पीछे सब छोड़ कर
तुम चले आना ।
मं शर्मा (रज़ा)
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