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होंठ तो खामोश थे
आँखें क्या कह गईं
तुमने क्या सुन लिया
बुरा क्यों मान गईं
नज़र तो मिली न थी
पलकों की नमी कह गई
दिल के दरवाज़े बंद थे
खिड़की खुली रह गई
होंठ तो खामोश थे
आँखें क्या कह गईं..
मं शर्मा (रज़ा)
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