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वो कहतेथे
दूसरों की खामियां
नज़रअंदाज़ करो
बड़े बनो
कोशिश की
नजरअंदाज किया
खामियाज़ा खामियों का
भरना पड़ा
रफ्ता रफ्ता फिर
एक दिन मैं
एक बड़ा आदमी
बन ही गया।
मं शर्मा (रज़ा)
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वो कहतेथे
दूसरों की खामियां
नज़रअंदाज़ करो
बड़े बनो
कोशिश की
नजरअंदाज किया
खामियाज़ा खामियों का
भरना पड़ा
रफ्ता रफ्ता फिर
एक दिन मैं
एक बड़ा आदमी
बन ही गया।
मं शर्मा (रज़ा)
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