
Share0 Bookmarks 7 Reads0 Likes
भरे पतझड़ में
खिली बहार सी
बिन मौसम के
बरसात सी
कोमल मन के
पहले उच्चार सी
नव-यौवन के
प्रथम उन्माद सी
मंदिर में स्थापित
अपने इष्ट सी
आनंद अनुभूति
किसी अभीष्ट की
ह्रदय से उपजी
सुर सरिता सी
मैं कविता हूँ
एक शब्दकार की।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments