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भरे पतझड़ में

खिली बहार सी

बिन मौसम के

बरसात सी


कोमल मन के

पहले उच्चार सी

नव-यौवन के

प्रथम उन्माद सी


मंदिर में स्थापित

अपने इष्ट सी

आनंद अनुभूति

किसी अभीष्ट की


ह्रदय से उपजी

सुर सरिता सी

मैं कविता हूँ

एक शब्दकार की।


मं शर्मा (रज़ा)

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