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हसरतों के विशाल गगन में
कभी पतंग सी उड़ी जिंदगी
समय की अनिश्चिताओं से
कभी गिरी कभी संभली जिंदगी
जीवन के दाँव पेचों में फंसकर
कभी कटी पतंग हुई जिंदगी।
मं शर्मा (रज़ा)
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हसरतों के विशाल गगन में
कभी पतंग सी उड़ी जिंदगी
समय की अनिश्चिताओं से
कभी गिरी कभी संभली जिंदगी
जीवन के दाँव पेचों में फंसकर
कभी कटी पतंग हुई जिंदगी।
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