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किसी शांत झील में
पत्थर फेंक कर कभी
तरंगों का कोलाहल देखा है
बिजली की नंगी तारों के बीच
किसी कटी पतंग को
फड़फड़ाते हुए देखा है
कभी सूखे पत्तों पर चल कर
चरमराते पत्तों को दर्द भरा
क्रंदन करते कभी देखा है
बेचैन तरंग कटी पतंग से जीवन को
समय की ठोकरों से
कभी चरमराते हुए देखा है ।
मं शर्मा (रज़ा)
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