
Share0 Bookmarks 19 Reads1 Likes
क्षण क्षण पर लिखा
उम्र का लेखा जोखा है
अपना हिसाब चुकता कर
हर लम्हा गुज़र जाता है
उतार दीं कश्तियाँ सारी
मँझधार के पानी में
कितनी पार उतरती हैं
यही देखना रहता है ।
मं शर्मा (रज़ा)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments