कच्चे धागे's image
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बार बार पढ़ने को जी चाहे

सिरहाने रखी किताब हो तुम

नित नए सिरे से लिखी जाए

ऐसी अधूरी कविता हो तुम


कच्चे धागों की पक्की डोर तुम

लाख जतन से तोड़ी न जाए

दिल चाह के भी भुला न पाया

ज़हन में बसी वो याद हो तुम ।


मं शर्मा(रज़ा)

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