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तू काबिल था कि नहीं

मैंने तो खुदा माना

हर सजा मैंने काटी

हर हुक्म तेरा माना



सदके में तेरे दर के

बरसों रहा आना जाना

पत्थरदिल निकला तू

मुझे गैर करके माना।


मं शर्मा (रज़ा)


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